भारत के आदिवासी इलाकों में ‘सभ्यता’ और ‘आधुनिकता’ के कदम पड़ने के बाद से प्राकृतिक-परम्परागत चिकित्सा की हमारी वर्षों पुरानी विरासत के ऊपर खतरा मंडरा रहा है।
जना, झारखण्ड के गुमला जिले में स्थित एक गाँव है। यहाँ की 90% से ज़्यादा जनसंख्या आदिवासी है जिस कारण यहाँ के जीवन के ज़्यादातर पहलू आदिवासी संस्कृति को दर्शाते हैं।
गाँव में सालों से रह रहे लोग याद करते हुए बताते हैं कि सदियों पहले उनके पूर्वज यहाँ आ कर बस गए थे। पहले, अपना जीवन यापन करने के लिए वे ज़्यादातर स्थानीय संसाधनों पर निर्भर रहा करते थे।
हालाँकि समय के साथ आधुनिक सुख-सुविधाएं भी जना तक पहुँचने लगीं। अब जना भी वैज्ञानिक और औद्योगिक विकास से वंचित नहीं रहा, फिर चाहे वो विकास कृषि संबंधित हो, या स्वास्थ्य और जीवन-शैली संबंधित।
भले ही गाँववालों को अब भी अपनी पारंपरिक कृषि पद्धति कुछ हद तक याद है, लेकिन उनके पूर्वजों का एथ्नोमेडिसिन (कीड़े-मकौड़ों, पेड़-पौधों और जानवरों के अलग-अलग भागों/शारीरिक अंगों से दवाइयाँ बनाने का पारंपरिक ज्ञान) संबंधित ज्ञान बस कुछ मुट्ठी भर लोगों तक ही सीमित रह गया है।
अनुवाद: भावना बिष्ट