मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले के एक छोटे से गांव गोडबहरा में अधिकांश लोगों की आजीविका कृषि और खेती पर निर्भर करती है. गांव में समुदाय अपनी आजीविका को प्रभावित करने वाले कठोर जलवायु परिवर्तन के साथ तालमेल नहीं बिठा पाए. इसका समाधान किसी के पास नहीं था तभी, फूलमती और उनके पति ने केंद्रीकृत नर्सरी स्थापित करने का फैसला किया. जिससे गांव के लोगों को एक निरंतर स्रोत और कृषि के लिए एक अधिक स्थायी मोर्चा प्राप्त करने में मदद मिल पाई.
फूलमती की कहानी बदलाव में विश्वास करने और सामूहिक एक्शन लाने का एक प्रमाण है. उन्होंने अपने गांव को नई प्रक्रियाओं को विकसित करने में मदद की.
फूलमती और उनके पति ने महसूस किया कि उनका गांव मौसम के मिजाज पर अत्यधिक निर्भर था जो लगातार बदल रहा था और इसलिए सभी के लिए राजस्व का एक निरंतर स्रोत होना मुश्किल-सा हो गया था.
फूलमती ने नारियल हस्क पीट में 10,000 पेड़, नारियल की भूसी से बनी मिट्टी, और बाकी उठी हुई क्यारियों में लगाकर एक केंद्रीकृत नर्सरी की दिशा में अपना काम करना शुरू कर दिया.