प्रदान (PRADAN), एक एनजीओ है जो ग्रामीण भारत में गरीबी कम करने के लिए काम करती है, हाल ही में इस संस्था ने आदिवासियों की आजीविका की स्थिति पर रिपोर्ट 2021 जारी की है। यह रिपोर्ट आदिवासी जीवन के दो विरोधाभासी पहलुओं को प्रस्तुत करती है।
एक तरफ, यह रिपोर्ट आदिवासियों को एक समृद्ध संस्कृति, परंपरा और विश्वदृष्टि वाले समाज की शक्ल में प्रस्तुत करती है जो प्रकृति के साथ, उन्होंने नेचर के साथ, आपस में और बड़े समाज के साथ अपने संबंधों को आकार दिया है। आदिवासी व्यक्तिगत तरक्की पर सामुदायिक भलाई को प्राथमिकता देते हैं, एक दूसरे का सहयोग करते हैं, इकट्ठा रहते हैं, प्रकृति के अनुसार जीवन जीते हैं और धन बटोरने को पसंद नहीं करते हैं।
दूसरी तरफ, 2021 की रिपोर्ट से पता चलता है कि आदिवासी ऐसे समुदायों का एक समूह है जो गरीब, अनपढ़, कुपोषित और कमजोर हैं।
क्या यह विरोधाभास अध्ययन डिजाइनर ग्रुप की मानसिकता को दर्शाता है, जो इस विचार से ग्रस्त है कि आदिवासी गरीब लोगों का एक समूह है? क्या यह विरोधाभास हकीकत में मौजूद है? अगर यह विरोधाभास हकीकत में मौजूद है तो इसके संभावित कारण क्या हैं?