गोंड गांवों में सीढ़ीनुमा खेती की स्वीकृति की कहानी

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मध्य प्रदेश में सिंगरौली जिले के चटनिहा गांव में दौरे के दौरान, रामकली और मुन्नी ने बताया कि किस तरह जुताई और बारिश के कारण उनकी ज़मीनों की उर्वरकता पर बुरा असर पड़ रहा है। दौरे के बाद की गई बैठक में यही मुद्दा बुधनी, सुग्मन्ति और बिट्टी पनिका जैसे अन्य गांव वालों द्वारा भी उठाया गया।

गांव का दौरा करते समय हमने हर तरफ़ पथरीली बंजर ज़मीनें देखीं। जब हमने बैठक में गांववालों से पूछा, “खेत की मिट्टी कहाँ गई?”, तब हमेशा की तरह मुन्नी अपने मज़ाकिया अंदाज़ में बोली, “मेरे खेत की मिट्टी तो शांति दीदी के पास है”। मुन्नी के खेत पहाड़ी के ऊपर की तरफ़ हैं। उसका परिवार हर साल खेती के लिए अपनी ज़मीन की जुताई करता है, लेकिन बारिश की वजह से पानी के साथ मुन्नी के खेतों की सारी उर्वरक मिट्टी बह कर नीचे घाटी में शांति के खेतों में जमा हो जाती थी।

प्रदान, अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय (एपीयू) और मध्य भारत के तीन गांवों की ग्रामीण समिति ने साथ मिलकर ‘अडैप्टिव स्किलिंग थ्रू एक्शन रिसर्च’ (‘असर’/एएसएआर) नाम से एक शोध की शुरुआत की। चटनिहा के लोगों के इस शोध से जुड़ने के बाद वहाँ मिट्टी के अपरदन, मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और फ़सल उत्पादन को बढाने से संबंधित कई चर्चाएं हुईं। अंततः शोध करने वाली पूरी टीम मृदा अपरदन का सामना कर रहे चटनिहा वासियों के लिए एक बहुत अच्छा समाधान लेकर आई।

Source: Vikalp Sangam